सोमवार, 23 अगस्त 2010

ईसाईयत का शताब्दी अभियान???????????


ईसाईयत का शताब्दी अभियान???????????
by Rajaneesh Shukla on Saturday, August 2३, 2010
'क्रिश्चियन वेदान्तिज़्म' पर एक लेख में श्री आर. गोर्डन मिल्बर्न लिखते हैं, ''भारत में ईसाई धर्म को वेदान्त की आवश्यकता है। हम धर्मप्रचारकों ने, इस चीज़ को जितनी स्पष्टता से समझ लेना चाहिए था, अभी नहीं समझा है। हम अपने निजी धर्म में स्वतंत्रता और उल्लास के साथ आगे नहीं बढ़ पाते हैं; क्योंकि ईसाई धर्म के उन पहलुओं को व्यक्त करने के लिए जिनका सम्बन्ध ईश्वर की सर्वव्यापकता से अधिक है, हमारे पास अभिव्यक्ति के प्रर्याप्त शब्द और प्रकार नहीं हैं। एक बहुत ही उपयोगी कदम यह होगा कि वेदान्त-साहित्य के कुछ ग्रंथों या अंशों को मान्यता दे दी जाए, और उन्हें 'विधर्मी ओल्ड टेस्टामेंट' की संज्ञा दी जा सकती है। तब चर्च के धर्माधिकारियों से इस बात की अनुमति मांगी जा सकती है कि उपासना के समय न्यू टेस्टामेंट के अंशों के साथ-साथ, ओल्ड टेस्टामेंट के पाठों के विकल्प के रूप में, इस विधर्मी ओल्ड टेस्टामेंट के अंश भी पढ़े जा सकते हैं। इंडियन इंटरप्रेटर 1913 ।

१९११ में जो प्रस्ताव था वह २०१० आते आते ईसाई मत मॆ स्वीकार्य तथ्य हो गया। पर यह सर्व धर्म समभाव नहीं है इसके निहीतार्थ को विवेचित करने की आवश्यकता है। देश केलिये यह आवश्यक विमर्श का बिन्दु है इस पर आपके विचार का आह्वान करता हूं।
इस दिशा में हुये एक दशक के परिवर्तनो का मै साक्षी हूं, कैसे भारत को ख्रीस्त साम्राज्य बनाने के षड्यन्त्र हुये है उसको नजदीक से देखा है चर्चा बढेगी तो खुलासा भी होगा।

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