रविवार, 29 अगस्त 2010

रच दें पुनः धर्म युद्ध

रच दें पुनः धर्म युद्ध
²Éपर का महाभारत अधिकार खो देने वाले राजकुमारों के द्वारा किये गये संघर्ष की कहानी है। उस युग में धर्म ऊंघ रहा था। आज जब कलि का प्रथम चरण है। धर्म पहली नींद सोया हुआ है। विग्रहवान धर्म राम बन्दी हैं। राजसत्ता ने अखिल ब्रह्माण्ड नायक कोटि कॊटि विश्व के प्रभु राम पर कब्जा कर लिया है। न्याय तथा दुष्ट दलन के एकमेव भरोसा राम स्वयं न्याय के लिये आस लगाये बैठॆ हैं। अधर्म और अन्याय के नाश के लिये प्रकट हुये भगवान स्वय़ं न्याय के लिये अपलक आस लगाये बैठे हैं। दुष्ट दलन, के लिये अवतरित प्रभु , अशरणशरणदाता करुणामूर्ति स्वयं शरण की तलाश कर रहे हैं। इससे अधिक दुःखदायी कोई बात नहीं हो सकती है यही भारत में नये महाभारत की परिस्थिति है।
न्यायालय का निर्णय आने वाला है। कोटि कॊटि हिन्दु जन की अविचल श्रद्धा के केन्द्र राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का फैसला आने वाला है, यह एक ऐसा मुकदमा है जिसमें स्वयं राम वादी है। न्याय के स्रोत, विग्रहवान धर्म को भी अदालत जाना पडा है। यह कोई खराब बात नहीं है न्याय की तुला पर सब समान है इसका इससे श्रेष्ठ उदाहरण भी नहीं हो सकता। पर प्रश्न यह है कि क्या राम को न्याय मिलेगा। क्या अशरण-शरण, त्रैलोक्य नायक सर्वदुःखभंजक असुर-दलदलन-तत्पर मर्यादा पुरुषोत्तम को शरण मिलेगी।
राम को राम का ही न्याय चाहिये। रामराज्य का न्याय चाहिये। सुकरात को मिले पश्चिमी लोकतन्त्रवादी न्यायालय का न्याय नहीं। तर्क से ,जिरह से , युक्ति से और अभियुक्ति से न्याय नहीं निर्णय मिलता है। ध्यान रहे निर्णय न्याय हो यह जरूरी नहीं है। व्यक्ति न्याय तभी दे सकता है जब वह व्यक्ति की परिधि से उपर उठ कर स्वयं विग्रहवान न्याय बन जाता है, न्यायमूर्ति हो जाता है। इसीलिये राम को विग्रहवान धर्म कह गया है वे सब के साथ न्याय करते हैं। कैकेयी, ताडका, सूपर्णखा , मारिच खर-दुषण त्रिसिरा सहित सभी असुरो साथ तो करते ही हैं, कुत्ते और गिलहरी को भी न्याय देते हैं। पर जब स्वयं न्यायमूर्ति, धर्मविग्रह न्यायालय में हो तो उसे न्याय कौन देगा। यह प्रश्न विकट है सकल विश्व के जन्म मरण के समय और स्थान एवं स्वरूपका निश्चय करने वाले प्रभु भी अपनी इस मायिक लीला के विस्तार के चक्कर में फंस गये हैं। उनकी ही रचना उनके स्वरुप और स्थान को संशययुक्त कर रही है।
यही धर्म के क्षरण का काल खण्ड है। जब स्वयं धर्म ही प्रश्नों के दायरे में है। ज्योतिपुंज को दीपक की रोशनी में देखने का प्रयास हो रहा है। इससे अधिक कठिन दिन क्या होगा कि ईश्वर से उसके होने का प्रमाण मांगा जाय। अतः इस विकट स्थिति में जन जन के प्राण धर्म के विग्रह राष्ट्र के आराध्य राम को न्याय मिले, ज्योतिपुंज से काले बादल छंटे धर्मोष्मा से धरती उष्म धर्मा हो, प्रशीतित न्याय प्रवाहित हो, इसके लिये प्रिय अप्रिय किसी को भी धर्मार्थ दण्डित करने का साहस हर हृदय में जगाना होगा।
न्याय कभी भी मात्र याचना से नहीं मिलता है, याचना से तो मात्र निर्णय मिलता है। पराक्रम न्याय की कसौटी है। अतः समाज को अपना पराक्रम दिखाना होगा। फिर एक बार हूंकार भरनी होगी। राम के देश में राम जन्म भूमि पर विवाद हो यह पराक्रम को चुनौती है। प्रत्येक भारतवासी की अस्मिता पर उठा प्रश्न है।
यही अवसर है अपनी अस्मिता की पहचान को स्थायी करने का। आइये अनादि इतिहास से चल रही धर्म रक्षण की अपनी गौरव गाथा को एक बार पुनः दुहरायें, नये शब्दों में नयी भाषा में अपने राममय इतिहास का पुनर्लेखन करॆं।