शनिवार, 22 अगस्त 2009

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का सेकुलराइजेशन : महामना के स्वप्न को ध्वस्त करने की साजिश

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का सेकुलराइजेशन : महामना के स्वप्न को ध्वस्त करने की साजिश

आज विभाग में मुझसे मिलने प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जी आये थे। प्रोफ़ेसर पाण्डेय जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला इतिहास विभाग के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष् तथा आचार्य हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी शिक्षा और शोध की विविध गतिविधियों में सक्रिय हैं। साधारणतया पाण्डॆय जी प्रसन्नचित्त ही मिलते हैं पर उस दिन वे कुछ दुःखी तथा कुछ उदास लग रहे थे। सज्जन अपना क्रोध भी नहीं छुपा पाते। इसलिये पाण्डेयजी की खिन्न मनोदशा पढने में मुझे समय न लगा और् मै ने उनसे इसका कारण पुछा तो उन्होने मेरे समक्ष दो पन्ने रख दिये। पन्नॊं को पढ कर मै स्तब्ध रह गया। ये पन्ने काशी हिन्दू विष्वविद्यलय प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में हेर फेर से सम्बन्धित था।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्देश्य महामना मालवीयजी ने स्वयं तय किये थे पर् अग्रेजों को उस पर आपत्ति नहीं थी, भारत सरकार को भी उस पर आपत्ति नहीं रही है लेकिन हिन्दू विशवविद्यालय का वर्तमान प्रशासन महामना के द्वारा तय किये गये उद्देश्यों से सहमत नहीं है और शायद इसीलिये उसने विश्वविद्यालय् के उद्देश्यों में परिवर्तन कर दिया है। अब यह महामना के सपनो का विश्वविद्यालय नहीं रहा । महामना ने इसकी स्थापना का प्रथम उद्देश्य “ अखिल जगत् की सर्वसाधारण जनता के एवं मुख्यतः हिन्दुओं के लाभार्थ हिन्दूशास्त्र् तथा संस्कृत साहित्य की शिक्षा का प्रचार करना, जिससे प्राचीन भारत की संस्कृति और विचार की रक्षा हो सके तथा प्राचीन भारत की सभ्यता में जो कुछ गौरवपूर्ण था उसका निदर्शन हो” रखा था। {to promote the Hindu Shastras and of Sanskrit literature as means of preserving and popularising for the benefits of Hindus in particular and of the world at large in general, the best thought and culture of Hindus and all that was good and great.} य़ह उद्धरण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पत्रिका प्रज्ञा के स्वर्ण जयन्ती विशेषांक से लिया गया है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने महामना द्वारा प्रथम क्रमांक पर निर्दिष्ट इस उद्देश्य से “अखिल जगत् की सर्वसाधारण जनता के लिये मुख्यतः हिन्दुओं के लाभार्थ” [for the benefit of Hindus in particular and of the world at large in general ] को हटा दिया है। ( देखें BHU wabe site- bhu.ac.in )

यह कोई मानव त्रुटि नही है, गलती नहीं है, सोची समझी साजिश है इस महान विश्वविद्यालय की पहचान मिटाने का कुत्सित प्रयास है। महामना के नेतृत्त्व में जिन लोगो ने अपना सब कुछ समर्पित उन सब की आस्था तथा समर्पण के साथ धोखा है।

इस वाक्यांश को हटाना संभवतया उस पुरानी साजिश का नवीनीकरण है जो इस विश्वविद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने के लिये दशको पूर्व भी रची गयी थी। तब महामना द्वारा लिखित उद्देश्य के इन्ही शब्दों ने हिन्दू शब्द को मिटने से रोका था। हां उस काल खण्ड में हिन्दू विश्वविद्यालय सहित समस्त काशी में जबरजस्त आन्दोलन हुआ और कुत्सित साजिश ध्वस्त हुई थी पर आज जब विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्य पर ही चोट हुई है विश्वविद्यालय में कोई प्रतिक्रिया सुनाई नहीं दे रही है, काशी में भी कोई कोहराम नहीं मचा है। यही कारण है कि प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जैसे चन्द संवेदनशील लोग क्रुद्ध तथा दुःखी हैं।

इस मुद्दे पर सभी राष्ट्रीय सोच वाले चिन्तकों को आगे आना होगा। यह छोटा विषय नहीं है। बल्कि एक एसे विश्वविद्यालय की पहचान से जुडा हुआ है जोजो नालन्दा तक्षशिला एवं विक्रमशिला की परम्परा का समकालीन प्रतिमान है जिसके स्नातको ने हिन्दू धर्म तथा भारतीय संस्कृति की कीर्ति पताका सम्पूर्ण विश्व में लहराई है। इसलिये काशी हिन्दू विशवविद्यलय् के हर नूतन पुरातन छात्र, स्नातक का दायित्त्व है कि इसका प्रतिरोध करे तथा महामना द्वारा स्थापित् इस सर्वविद्या की राजधानी का चिर् पुराण चिर् नवीन उद्देश्य की रक्षित हो सके।

प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जैसे कुछ लोग सक्रियता के साथ इसका प्रतिरोध कर रहे हैं किन्तु इनकी संख्या मुठ्ठी भर ही है इसलिये प्रतिरोध की यह आवाज अनसुनी है। इस हेतु हम सब को सामने आना होगा सबल प्रतिरोध करना होगा। ध्यान रहे आज देश के दो बडे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों मे दो नये तरह के कार्य हो रहें है। जहां एक ओर हिन्दु विश्वविद्यालय से हिनू पहचान समाप्त करने की साजिश चलरही है वहीं अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पांच शाखायें देश के विभिन्न क्षेत्रो के मुस्लिम बहुल इलाको में खोली जा रही हैं यह सच्चर कमेटी के बाद नया कुत्सित प्रयास है। इन सबको आज समग्रता में देखना होगा। इन सभी देश विरोधी कृत्यों पर एक साथ प्रहार करना होगा।

2 टिप्‍पणियां:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जब हम भारत को इण्डिया बनाने में तुल ही गए हैं तब यह सब होगा। हिन्‍दू कोई धर्म नहीं है, यह एक जीवन पद्धति है इसी कारण इसका रक्षक कोई नहीं है। जब विश्‍व की जीवन पद्धति ही बदलती जा रही है तब हिन्‍दू जीवन पद्धति पर होने वाले आक्रमणों को कौन रोकेगा? आज हम कहते हैं कि हिन्‍दू और मुस्लिम में अन्‍तर क्‍या है? धर्म ही तो बदला है तुम्‍हारी जीवन पद्धति तो वही है। लेकिन बस यही बात ठीक नहीं है। वे कहते हैं कि हमारी जीवन पद्धति यह नहीं है। तुम त्‍याग की बात करते हो, हम इसे नहीं मानते। हम भोग के लिए या विस्‍तार के लिए दूसरों पर आक्रमण को जायज ठहराते हैं। अत: ऐसी प्रतिक्रिया के लिए चन्‍द मुठ्ठी भर लोग आगे आ भी गए तो कुछ नहीं होगा। क्‍योंकि स्‍वयं हिन्‍दू ही अपनी जीवन पद्धति बदलने को तैयार है। वह त्‍याग की भाषा से थक चुका है, उसे भी अब भोग की भाषा अच्‍छी लगने लगी है।

बेनामी ने कहा…

Chintaneey.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।