शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

श्रीकृष्णस्तु भगवान स्वयम्

भारतीय धर्म दृष्टि में यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण ईश्वर के साक्षात अवतार हैं मत्स्य से बुद्ध तक के अन्य सभी अवतार ईश्वर के अंशावतार ही है। अतः कृष्ण अन्य अवतारों से विशिष्ट हैं। यह् वैशिष्ट्य श्रीकृष्ण के जीवन से अभिव्यंजित भी होता है। कालयवन के डर से युद्ध छोड़ कर भागने वाले को उस युग के महान योद्धा भीष्म सर्वश्रेष्ठ योद्धा बताते हैं। गोपियों से रास रचाने वाला, १६ हजार रानियों वाला यह पुरुष वेदव्यास के अनुसार योगेश्वर है। जो किसी राज्य का राजा नहीं है वह युधिष्ठिर द्वारा सभी राजाओं के मध्य राजसूय यज्ञ में अग्र पूजा का अधिकारी बनता है जो अपनी ही सेना के विरुद्ध युद्ध करता है। इन सबसे उपर, जो नीति और मर्यादा से च्युत अपने पुत्रों, पौत्रों एवं बांधवो का नाश अपने आखों से देख सकता है वही सही अर्थो में पूर्ण ईश्वर है।

वाह्य विरोधों का परिशमन करता हुए, धर्म के परिरक्षणार्थ अपनी ही रचना का ध्वन्स करने मे मोह का अनुभव नकारते हुए, असफलता से निराश होते हुए, अनासक्त भाव से कर्म पथ पर चलते रहने की प्रेरणा देने वाला यह ईश्वर जो पुत्र, सखा, भ्राता, वल्लभ, पति तथा पिता सभी रुपों में सहज अपना और प्रिय लगने वाला है विलक्षण रूप से इहलौकिक है.

ऎसे परम ब्रह्म स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव आपको अखण्ड पुण्य दायक हो।

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