hindu धर्म को समझाने के लिए अनेक तरीके खोजे गए है । इस सम्बन्ध में नये रास्ते खोजने की अपेक्षा उसके मूल को समझना आवश्यक है । अतः आवश्यकता को समझते हुए मै निम्न तीन बिन्दुओं की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूगां। १.जीवन एक आरोही सोपान २ जगत अनादि एवं अनंत ३ कर्म की प्रभुसत्ता
जीवन : एक आरोही, सोपान का अर्थ
यह जीवन अन्तिम नहीं है। इस जीवन का लक्ष्य नए तथा अविनाशी जीवन स्थिति की प्राप्ति है। यतोभ्युदय निःश्रेयस प्राप्ति स धर्म। अत: इस जीवन में अभ्युदय तथा लोकोत्तर जीवन में नि:श्रेयस की प्राप्ति ही मानव मात्र का लक्ष्य है।
जगत अनादि एवं अनंत
इस जगत का कोई कर्त्ता नही है इस का नाश भी किसी अतिप्राकृतिक सत्ता सम्भव नही है । किंतु यह दुयाँ रखना है कि जगत तथा संसार में अन्तर है । जो इन दोनों को समानार्थक समझते है उन्हें वस्तुटी: हिंदू जीवन की इस विशेषता का ज्ञान नही है। अत: संसरण के अर्थ में ससार को ग्रहण करना चाहिए ।
कर्म की प्रभुसत्ता
कर्म की प्रभुसत्ता का तात्पर्य एक इसी विधि या प्रणाली से है जिसमें मनुष्य के कर्मो को कुल परिणाम ही उसका जीवन होता है । भाग्य या ईश्वरानुग्रह का स्थान इस प्रकार की व्यवस्था में अत्यन्त क्षीण होता है। यह व्यवस्था सैद्धांतिक रूप में पुरुषार्थ व्यवस्था में देखि जा सकती है।
1 टिप्पणी:
aapne atyant mohak prastuti di hai. Hindu Dharm ke mahan sandesh ko bahut hi alpa shabdon me kintu badi sundarata se aapne paribhashit kiya hai. sachmuch ye shabd antahkaran ko anant satta ki or mod dene me saksham hain.
aapka
rakesh upadhyay
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