शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी के साई बाबा के हिन्दू देवता होने पर प्रश्न उठाने के बाद से नये सवाल खडे हुये हैं ----
१ १. क्या सनातन धर्म परिभाषित
धर्म है ?
२.क्या सनातन धर्म हिन्दु
समाज में कोई संप्रदाय है ?
३.क्या आर्य समाज सनातन धर्म
से बाहर है ?
४.क्या सनातन धर्म में नवीन
उपासना प्रणाली के लिये कोई स्थान नही है ?
५.क्या सनातन धर्म को संचालित
करने वाली कोई चर्च जैसी संस्था है ?
६. क्या शंकराचार्य की भूमिका
वैसी ही है जैसी कि इस्लाम मे खलीफा या ईसाइयत में पोप की है?
७. क्या सनातन धर्म में फतव
जारी करने का किसी को कोई अधिकार है?
दूसरी ओर साई भक्तो ने भी जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे नयी उपासना परंपराओं को ले कर भी कुछ सवाल सामने आये हैं ----
१.
क्या हिन्दू धर्म संस्थान
में किसी आलोचना का उत्तर मुकदमे से दिया जायेगा ?
२.
क्या प्रतिरोधी विचारो को
बल और संख्या के आधार पर दबाना हिन्दू धर्म परम्परा का भाग है ?
३.
क्या किसी वैदिक मन्त्र मे
हेर फेर करना हिन्दू परम्परा में स्वीकार्य है ?
४.
नयी उपासना पद्धति की स्थापना
का अर्थ क्या पूर्व में मान्य देवताओं के विग्रह को अवमानना की स्थिति में रखना है
?
५.
क्या चर्च से समतुल्य
संस्था निर्मित कर हिन्दू धर्म परम्परा का विरूपण नहीं है ?
६.
क्या पूर्व से स्थापित
मन्दिरों मे सांई की प्रतिमा की स्थापना धर्मशास्त्रीय दृष्टि से उचित है?
७.
क्या शंकराचार्य के पद पर
अभिषिक्त व्यक्ति की अवमानना हिन्दू धर्म के अनुकूल है ?
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