गीता जयन्ती पर विशेष—
आज भगवद् गीता का प्राकट्य दिवस है अतः इस दिन का विशेष महत्व है। आज के दिन मन में उठने वाले प्रश्नों में, गीता धर्मग्रन्थ है या नीतिग्रन्थ यह विश्व व्यवस्था की दार्शनिक विवेचना है अथवा रणनीति का प्रतिपादन आदि प्रश्न तो महत्वपूर्ण हैं ही, किन्तु अधिक महत्वपूर्ण है इस बात का विचार कि वह कौन है जो गीता के प्राकट्य का साधकतम कारण है? भगवान श्रीकृषण के नाते गीता है अथवा अर्जुन के नाते इसका मह्त्व है। इनमें से कौन है जो न होता तो गीता न होती?
इस संबंध में मेरा मानना है कि वह अर्जुन है जो गीता को संभव बनाता यदि अर्जुन न होता तो गीता न होती। श्रीकृष्ण तो ईश्वर हैं उनके लिये गीता का संगायन कौतुक मात्र है। किन्तु अर्जुन अर्थात नर के लिये ईश्वर से प्रश्न, प्रति प्रश्न करना सहज नहीं है। श्रीकृष्ण तो बताने के लिये ही हैं, जो जानता है उसके लिये बताना आसान है पर जो नहीं जानता है वह बेचारा क्या पूछ सकता है? बिना जाने पूछना कठिन है।
अज्ञ तो निर्भ्रान्त होता है। संशय ज्ञान की पूर्व शर्त है तो ज्ञानपूर्वक ही होने वाली घटना है, इसलिये माना जाता है कि एक ज्ञान दूसरे ज्ञान को जन्म देता है। अतः अर्जुन ही भगवद्गीता में महत्वपूर्ण है ईश्वर तथा ईश्वरीय क्षमता से युक्त लोग तो हर काल खण्ड में होते हैं जो संशयों का निवारण कर सकने में सक्षम हैं। पर ऐसा शंकालु जो ईश्वर का खौफ खाये बिना लगातार पूछता जाये दुर्लभ है। इस दुर्लभ क्षण की उपस्थिति जब भी होती है तो इतिहास बदलने वाला ज्ञान प्रकट होता है।
भगद्गीता इस कारण से ही विशिष्ट है कि इसक प्रथम श्रोता अर्जुन हैं। अर्जुन वह सधारण आदमी है जो पूछना जानता है प्रश्न खडे करना जानता है। जब प्रश्न खडे होते हैं तो जानने वाले को बताना ही पडता है। इस बताने की प्रक्रिया का नाम ही गीता है। यह किसी एक मत पन्थ का ग्रन्थ नहीं है समूची मानव जाति का ग्रन्थ है। इसमें अर्जुन है, प्रश्नकर्ता अर्जुन है इसलिये यह पान्थिक धर्मग्रन्थ न हो कर समस्त मानव जाति का ग्रन्थ है।
यह अर्जुन के कारण ही हो सका है, अर्जुन पूछता गया भगवान को बताना पडा। भगवान तो सर्वज्ञ है सभी रास्ते जान्नते है पर सभी रास्ते गीता में ही दिखतें हैं और कहीं नहीं। तो मातर् इसलिये कि गीता में ही अर्जुन है अन्य धर्मग्रन्थों में अर्जुन नहीं है। आज गीता जयन्ती का परम पावन दिन अर्जुन सा संशय वाले मन का होने का बनने का सत्संकल्प लेने का दिन है।
2 टिप्पणियां:
गीता में ही अर्जुन है अन्य धर्मग्रन्थों में अर्जुन नहीं है.....Arjun hone se he Gita hai...
ek bade sawal ka sahaj javab....aapne diya..
गीता की चर्चा करने से पूर्व इस बात का निर्णय करना जरूरी है कि महाभारत युद्ध क्या था और क्यों लड़ा गया। महाभारत काल में व्यक्तिगत अहंकार और स्वार्थपरता चरमोत्कर्ष पर थी। भौतिक सुख समृद्धि के कारण आध्यात्मिक भाव लुप्त हो गये थे। ऐसे विकट समय में श्रीकृष्ण ने देश काल की मर्यादा सुरक्षित रखते हुए आधारभूत समन्वयवादी दृष्टि विकसित की और उसे अपने आचरण द्वारा क्रियात्मक रूप दिया। उन्होंने युधिष्ठिर को न केवल अपने साम्राज्य की प्राप्ति के लिए वरन् दुर्योधन द्वारा शोषित जनता के पक्ष में युद्ध करने का आदेश दिया। जो युद्ध स्वाधिकार की प्राप्ति के लिए केवल भाइयों का संग्राम हो सकता था वह आर्य और अनार्य संस्कृति के उन पक्षों के निर्णय का युद्ध हो गया जो कम से तीन हजार वर्ष तक भारतीय परम्पराओं का निर्णायक बना। उन्होंने समझाया कि दुष्ट को प्रसन्न करने की नीति न जनता का उपकार कर सकती है न राष्ट्र और धर्म का। त्रेता युग में जो काम महर्षियों ने राम-रावण युद्ध के माध्यम से किया, वही द्वापर युग में पाण्डव-कौरव युद्ध के द्वारा प्रस्तुत किया गया। कलयुग अब शुरू ही है.... //सादर //
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